जिस प्रकार बीज की श्रेणी ही उसके फल की गुणवत्ता
निर्धारित करती है,उसी प्रकार मनुष्य का व्यक्तित्व भी उसकी आत्मछवि द्वारा
निर्धारित होता है। यदि उत्तम बीज है तो निश्चय ही उसका फल भी उत्तम होगा और इसके विपरीत
यदि बीज सड़ा हुआ या निम्न स्तर का है तो उसका फल या तो उगेगा ही नहीं या फिर निम्न
स्तर का होगा। यही बात हम सब पर भी लागू होती है। यदि हमारी आत्मछवि श्रेष्ठ है
अर्थात हम खुद की नज़रों में श्रेष्ठ हैं,काबिल हैं तो निश्चय ही हमारे व्यक्तित्व
का विकास उत्तरोत्तर होता जाएगा। इस संबंध में एक बात स्पष्ट करना जरूरी है, वो यह
है कि खुद को आँकने में घमंड का कोई स्थान न हो। उसमें गर्व तथा ईमानदारी हो, घमंड
तथा बेईमानी नहीं। स्वयं का आँकलन करते समय यह बात अवश्य याद रखें कि हम दो लोगों
से कभी बेईमानी नहीं कर सकते- अपने आप से व ईश्वर से। यदि हम अपना आँकलन सही ढंग
से नहीं करते तो उसमें किसी अन्य की नहीं बल्कि स्वयं हमारी ही हानि है। हमारी
प्रतिभा संकीर्णता में ही दबकर
दम तोड़ देगी और हमारा जीवन नारकीय हो जाएगा और
ऐसी जिंदगी हम कदापि नहीं चाहते। तो फिर क्यों न हम अपनी आत्मछवि को बेहतर बनाने का
प्रयास आरंभ करें जिससे हमारा जीवन आनंद व संतुष्टि से आप्लावित हो जाए –
1.
हमेशा
मुस्कुराते रहें। जब जीवन में
संघर्ष के क्षण हों तब भी स्थिरता
बनाए
रखें, विचलित न हों।
2.
ईश्वर को हमेशा याद रखें। अपनी कामयाबी का सारा श्रेय
खुद को न दें।
3.
अपने
चरित्र में विनम्रता लाएँ।
4.
घमंड
जैसे घुन से बचें अन्यथा वह
आपको अंदर ही अंदर खोखला कर
देगा।
5.
लोगों
पर नुक्ताचीनी न करें, व्यंग्य-बाण कदापि न छोड़े क्योंकि इससे आपकी आत्मछवि
पर दुष्प्रभाव पड़ेगा।
6.
भावनाओं
में बहकर कार्य न करें। हमेशा अपने मस्तिष्क के विचारों को
प्राथमिकता दें।
7.
लोगों
की कमियों पर फोकस न करें बल्कि उनकी अच्छाइयों पर फोकस करें।
8.
हमेशा
याद रखें कि बेहतर व सकारात्मक सोच मात्र कुछ ही लोगों की होगी, सभी की
बिल्कुल नहीं।
9.
आम
लोगों की सोच (जो बहुधा नकारात्मक ही होती है ) देखकर खुद
अपनी
सोच को संदेहात्मक
दृष्टि से न देखें।
एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........
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