मनुष्य चाहे आस्तिक
हो या नास्तिक, यह बात तो सभी मानेंगे कि वे ब्रह्मांड का एक अत्यंत लघु अंग हैं ।
जो लोग ईश्वर को मानते हैं, वे स्वयं को उसका अंश मानते हैं । जो लोग ये मानकर
चलते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड
ऊर्जा द्वारा
संचालित है, वे स्वयं को उस ऊर्जा का एक अणु मानते हैं। कहने का भाव यह है कि हर
कोई ब्रह्मांड से हमारे घनिष्ठ व परम नाते
को स्वीकार करता है
।
ब्रह्मांड में बिजली
के तार के समान अपार, असीमित व अक्षय शक्ति है।ऐसा नहीं है कि ब्रह्मांड को एडीसन,
अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी आदि महान हस्तियाँ ही प्रिय थी, हम उसे प्रिय नहीं ।
ऐसा भी नहीं है कि ब्रह्मांड की शक्ति कम हो गई है, उसके पास हमें देने के लिए
भंडार नहीं
है । ब्रह्मांड की
शक्ति को जो जानता और महसूस करता है, वह ही उसका सदुपयोग करके क्रांति ला सकता है,
ठीक वैसे ही जैसे इन महापुरुषों ने किया ।
यदि बिजली के तार का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए
तो वह वरदान सिद्ध होता है, उसी प्रकार यदि हम ब्रह्मांड की चुम्बकीय शक्ति का
विवेकपूर्ण उपयोग करें तो यह हमारे लिए वरदान सिद्ध होगी । जैसे ऊपर फेंकी हुई
गेंद गुरुत्वाकर्षण के कारण वापिस नीचे गिरती है वैसे ही ब्रह्मांड में आप जैसा संदेश
संप्रेषित करेंगे वैसा ही आपको मिलेगा। यदि आप सत्यता, ईमानदारी, पवित्रता, प्रेम
व परमार्थ आदि जीवन-मूल्यों से पोषित होकर अच्छा सोचेंगे, सकारात्मक दशा व दिशा
में विचार करते हुए संदेश संप्रेषित करेंगे तो ब्रह्मांड आपके जीवन को वैसा ही
संदेश संप्रेषित करने के लिए आपकी परिस्थितियों को आपके अनुकूल बनाने में जुट
जाएगा । आपसे जैसी तरंगें प्रवाहित होंगी वैसी ही तरंगें आप तक लौटेंगी ।
अतः ब्रह्मांड की
शक्ति का विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करें और इच्छित फल पाएँ ।
एक नई आशा के साथ
फ़िर मिलेंगे..........
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