आईने में हम अपना
प्रतिबिम्ब देखते हैं अर्थात हम जैसे हैं वैसे ही हम उसमें स्वयं को पाते हैं ।
ठीक यही स्थिति हमारे मस्तिष्क की है । जैसे हमारे विचार होते हैं, जैसा हम सोचते
हैं, हमारा मस्तिष्क वैसा ही कार्य करता है । कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हमारी
सोच नकारात्मक है
तो मस्तिष्क भी
नकारात्मक कार्य करता है किंतु इसके विपरीत यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो
मस्तिष्क सकारात्मक कार्य करता है ।
अच्छे व बुरे भाव
तथा विचार तो उत्पन्न होते ही रहते हैं
,ये हमारा
निजी कार्य व कर्तव्य
है कि हम अच्छा ही सोचें क्योंकि अपनी जिंदगी के
मालिक हम खुद हैं,
अपने चरित्र का विकास हमें खुद ही करना है ।
जिस प्रकार हम
प्रतिदिन अपने शरीर के लिए भोजन करते हैं
और हमारा यह प्रयास रहता है कि हम संतुलित भोजन करें ताकि हम स्वस्थ रहें ।
उसी प्रकार क्या हम अपने दिमाग को भी प्रतिदिन भोजन कराते हैं और क्या हमारी यह
कोशिश रहती है कि हम उसे भी सदविचारों से पोषित भोजन दें या फिर हम उसे जैसा भी
समाज में नकारात्मक व कुविचारों से ग्रस्त कैसा भी भोजन खिला देते हैं ।
सोचिए ! शरीर के भोजन के लिए इतनी सावधानी और मस्तिष्क
के भोजन के लिए इतनी लापरवाही ! जबकि हमारा यह शरीर
तो रेलगाड़ी के समान है और मस्तिष्क इंजन के समान है । जिस प्रकार इंजन के बिना
रेलगाड़ी नहीं चल सकती, उसी प्रकार मस्तिष्क के बिना शरीर जीवित शव है ।अत: इस रेलगाड़ी रूपी शरीर को सुचारू रूप से चलाने
के लिए मस्तिष्क रूपी इंजन में सकारात्मक सोच व सदविचारों की सामग्री डालें ।
यदि आप प्रतिदिन
अपने शरीर के साथ-साथ अपने दिमाग का भी ख्याल रखेंगे तो आपका एक-एक दिन आपको वरदान
के समान प्रतीत होगा और यही रेलगाड़ी आपको आपके सपनों के स्टेशन तक अवश्य ले जाएगी
।
तो देर किस बात की,
दृढ़-निश्चय रूपी टिकट लें और अपनी जिंदगी के सुहाने सफ़र की शुरुआत करें ।
एक नई आशा के साथ
फ़िर मिलेंगे..........
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