Wednesday, 6 April 2016

कूटनीति छोड़ो : मानव-नीति अपनाओ


प्राचीनकाल में कूटनीति का अर्थ कार्य-व्यापार में वाक्-चातुर्य, छल-प्रपंच व
धोखा-धड़ी  से लगाया जाता था परंतु आजकल डिप्लोमेसी के लिए हिन्दी में कूटनीति के स्थान पर राजनय शब्द का प्रयोग होने लगा है।महान कूटनीति़ज्ञ चाणक्य ने कूटनीति के चार सिद्धांतों- साम (समझाना, बुझाना), दाम (धन देकर सन्तुष्ट करना), दण्ड (बलप्रयोग, युद्ध) तथा भेद (फूट डालना) का वर्णन किया है । किन्तु उसका यह भी मत है कि साम दाम से, दाम भेद से और भेद दण्ड से श्रेयस्कर है। 
कहने का अभिप्राय यह है कि साम अर्थात समझा-बुझाकर कार्य करवाना सर्वोत्तम है ।तभी तो चाणक्य ने भी इसका समर्थन किया है ।
यदि हम आज के परिप्रेक्ष्य में इस पर विचार करें तो निश्चित रूप से हम पाएँगे कि नैतिक-मूल्यों पर आधारित समझाने-बुझाने से कार्य में तो सफलता मिलती ही है, साथ ही व्यक्ति का चारित्रिक विकास तथा उत्थान भी होता है । हमारा सहयोगी भी दिल से हमारी बात मानता है और हमें सम्मान भी देता है ।जिस समाज या संगठन में इस नीति को प्राथमिकता दी जाती है, वह समाज या संगठन सफलता की सीढ़ियाँ जल्दी व अधिक तय करता है।
ये बड़े खेद की बात है कि आधुनिकता के इस दौर में लोग शार्ट-कट अपनाने के चक्कर में व निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर अन्य सिद्धांतों-दाम, दंड और भेद को अपनाते हुए कार्य़ करना चाहते हैं, जिससे कार्य-पूर्ति में तो जटिलता आती ही है साथ ही आपसी बैर-द्वेष, वैमनस्य की भावना भी पनपती है । व्यक्ति का चारित्रिक पतन भी होता है और समाज भी अवनति के गर्त में चला जाता है ।
अतः यदि हम अपना, अपने परिवार और समाज का हित चाहते हैं तो हमें कूटनीति को छोड़ना होगा और मानव-नीति को अपनाना होगा ।

एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........







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