आज की भागदौड़ भरी
जिंदगी में मानव कहीं खो-सा गया है। वह हर समय किसी न किसी काम में उलझा रहता है,
इस वजह से वह चिंता व तनाव से ग्रस्त रहता है। विडंबना यह है कि हर व्यक्ति जीवन
में सफलता की बुलंदियों को छूना तो चाहता
है किंतु वह खुद को वक्त देना ज़रूरी नहीं समझता जबकि आत्मविकास के लिए यह पहली
शर्त है।
कुछ लोग यह प्रश्न
कर सकते हैं कि स्वयं को समय देना इतना ज़रूरी क्यों है? इसके लिए हमारे पास
समय ही कहाँ है ? बस, इसी प्रश्न में इसका उत्तर भी छिपा है।
जब हमारे पास खुद के
लिए समय नहीं है तो इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि हम हमारी ज़िंदगी में खुद को महत्त्व
नहीं देते अर्थात हमें इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि हम क्या सोचते हैं, हमें
क्या करना चाहिए व क्या नहीं। यदि हम ही खुद को महत्त्व नहीं देंगे तो भला और कोई
कैसे हमें महत्त्व देगा। शुरूआत तो हमें ही करनी होगी। हमें ही स्वयं चिंतन-मनन
करके खुद की अच्छाइयों व बुराइयों का पता लगाना होगा और उनके अनुसार जीवन को
सुधारकर बेहतर जीवन की नींव रखनी होगी।
यदि हम इतिहास के
पन्नों को उलट कर देखें तो पाएँगे कि महान व्यक्तियों ने खुद चिंतन-मनन करके अपने
विषय में जाना तथा आवश्यकतानुसार अपने जीवन में सुधार करके दूसरों के समक्ष खुद को
आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। सफ़लता की तीव्र आकांक्षा वाला व्यक्ति ही यह कर
सकता है।
वस्तुतः खुद को वक्त
देने से ही व्यक्ति अपने आप को झकझोरता है और खुद से प्रश्न करता है। अपने
प्रश्नों के उत्तर वह स्वयं ही खोजता है और फिर उन्हें कार्यरूप में कार्यान्वित
करता है। इस तरह वह चुनौतियों का सामना करने की ताकत खुद ही जुटाता है। वह स्वयं
ही अपना शिक्षक, मार्गदर्शक व परामर्शदाता होता है। यह तभी हो सकता है, जब व्यक्ति
खुद को पर्याप्त समय दे क्योंकि स्वचिंतन ही उन्नति का प्रवेश द्वार है।
एक नई आशा के साथ
फिर मिलेंगे . . .
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