हमारा मनोमस्तिष्क
भावों और विचारों का पिटारा है ।प्रत्येक क्षण विचार उमड़ते-घुमड़ते रहते हैं। ये
कटु सत्य ही है कि ज्यादातर विचार नकारात्मक ही होते हैं।बहुत कम ही ऐसे विचार
होते हैं जो सकारात्मक होते हैं क्योंकि कहा भी जाता है कि बुराई अधिक होती है,
अच्छाई बहुत कम ;झूठ का साम्राज्य विशाल होता है जबकि सच का
विस्तार कम होता है ।
ऐसे नकारात्मक
विचारों की गिरफ़्त से अंतर्द्वद्व की आँधी-तूफान जैसी स्थिति व्याप्त हो जाती है।
अंतर्द्वद्व का यह भँवर ऐसा होता है कि व्यक्ति इसमें धँसता ही चला जाता है और
अंतत: मनोरोगी तक हो सकता है।
इसके विपरीत यदि
व्यक्ति नकारात्मक विचारों की गिरफ़्त में न आकर सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाए तो
उसकी जीवन-धारा नया मोड़ ले लेती है। ऐसे में वह नई मंज़िलों की ओर बढ़ता हुआ
मार्ग की नई चुनौतियों को ठोकर मारता हुआ लक्ष्य़ की ओर संधान करता हुआ आगे ही आगे
बढ़ता चला जाता है और अपना जीवन सुखी
बना लेता है।
अंतर्द्वंद्व के समय
व्यक्ति क्या करे ? अंतर्द्वंद्व की गिरफ़्त में न आए, उसके लिए
क्या करे ?
(इन प्रश्नों का उत्तर अगले ब्लॉग में ज़रूर
पढ़ें)
एक नई आशा के साथ
फिर मिलेंगे . . .
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