Thursday, 2 June 2016

आखिर सुंदरता है क्या ?

आम तौर पर लोग कहते हैं वह बहुत सुंदर है, कितनी प्यारी है ना । फिर जब कोई प्रश्न करता है कि अच्छा उसकी सुंदरता का राज़ क्या है? तो कहा जाता है कि उसका रंग बहुत गोरा है या उसकी आँखें बहुत बड़ी-बड़ी हैं या उसके बाल कितने लंबे और काले हैं या हँसते हुए उसके
गालों में गड्ढे पड़ते हैं या उसकी मुस्कुराहट बड़ी प्यारी है आदि....।
अक्सर यही होता है, हम लोग किसी के शरीर की खूबसूरती को ही सुंदरता का मापदंड समझकर अपनी निर्णय सुना देते हैं जबकि ऐसी
सोच क्षणिक होती है क्योंकि वास्तव में व्यक्ति का मन भी देखना चाहिए, सिर्फ तन नहीं।
मन की सुंदरता महत्त्वपूर्ण है क्योंकि –
·       तन की खूबसूरती बाह्य होती है जबकि मन की सुंदरता आंतरिक।
·       तन की खूबसूरती तो आयु-वृद्धि के साथ क्षीण होने लगती है किंतु मन की खूबसूरती आयु-वृद्धि के साथ क्षीण नहीं होती।
·       तन की खूबसूरती को निखारने के लिए अनेक प्रकार की प्रसाधन सामग्री का उपयोग किया जाता है जबकि मन की खूबसूरती को निखारने के लिए व्यक्ति को अपने मन को उदार बनाने के लिए खुद को मिटाकर फिर गढ़ना पड़ता है।
·       तन की खूबसूरती सभी को सुलभ होती है किंतु मन की खूबसूरती
किसी विरले को ही सुलभ हो पाती है।(कहने का भाव यह है कि   तन की सुंदरता के दर्शन किसी की भी नज़रें कर सकती हैं किंतु मन की सुंदरता मात्र उसी को नज़र आती है जिसका हृदय पवित्र और नेक हो )
·       तन की खूबसूरती मृग-मिरीचिका के सदृश है जबकि मन की खूबसूरती कुबेर के कोष के समान है।(कहने का भाव यह है कि
यह ज़रूरी नहीं कि जिसका तन सुंदर हो उसका मन भी पवित्र और शुद्ध हो, किंतु जिस व्यक्ति का मन शुद्ध और पावन है उसका
हर कृत्य दूसरों के लिए प्रेरणादायी व परोपकारी होगा।)
·       तन का खूबसूरती के लिए आप जैसे हैं, वैसे रहकर ही आप उसके
दर्शन कर सकते हैं किंतु मन की खूबसूरती के दर्शन करने के लिए आपको अपने हृदय को पावन, शुद्ध और नेक बनाना होगा।
·       तन की खूबसूरती से आप कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के दिलों को जीत सकते हैं किंतु मन की खूबसूरती से आप पूरी दुनिया जीत
सकते हैं।
·       तन की खूबसूरती दूसरों के दिलों में ईर्ष्या उत्पन्न कर सकती है जबकि मन की खूबसूरती ईर्ष्या को समाप्त करने का माध्यम बन सकती है।
·       तन की खूबसूरती अहंकारजनित हो सकती है जबकि मन की खूबसूरती अहंकाररहित ही होगी।
·       तन की खूबसूरती का स्वामी कल्पनाओं में, माया-जाल में जीता है जबकि मन की खूबसूरती का स्वामी यथार्थ में जीता हुआ आदर्श की स्थापना करता है।
·       तन की खूबसूरती जहाँ ईश्वर की देन हैं वहाँ मन की खूबसूरती ईश्वर का अमूल्य वरदान है।
·       तन की खूबसूरती से लोगों को निकट बुलाया जा सकता है किंतु उनका मन नहीं जीता जा सकता। मन की सुंदरता से लोगों को निकट तो नहीं बुलाया जा सकता किंतु उनका मन अवश्य जीता जा सकता है।
अतः तन व मन दोनों की सुंदरता मायने रखती है, दोनों का महत्त्व है। यदि तन सुंदर है तो अच्छा है किंतु यदि मन भी सुंदर है तो सोने पर सुहागा है।
मैंने इस विषय पर ब्लॉग इसलिए लिखा क्योंकि आजकल लोग अपने तन की सुंदरता को बहुत महत्त्व देते हैं तथा मन की सुंदरता को नकार देते हैं। निश्चय ही दोनों को निखारें, तभी जीवन
की सार्थकता है।

 एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........


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