Wednesday, 10 January 2018

मन की अवहेलना न करें

जब स्वास्थ्य की बात होती है तो लोग अक्सर शारीरिक साफ-सफाई व उचित खान-पान के विषय में ही सोचते हैं, जबकि मानसिक धरातल पर भी स्वास्थ्य का उतना ही महत्त्व है। यह बड़े अफसोस की बात है कि लोग मानसिक स्वास्थ्य की ओर ध्यान ही नहीं देते। जब तक व्यक्ति का शरीर व मन - दोनों ही स्वस्थ नहीं हैं तब तक वह स्वस्थ नहीं हो सकता। भयंकर से भयंकर रोग भी मन के स्वस्थ होने के कारण ठीक हो जाते हैं और शारीरिक रूप से पूर्णतया स्वस्थ व्यक्ति भी मानसिक दृष्टि से विकारी होने के कारण रोगों की गिरफ्त में आ जाता है। अतः पूर्णतया स्वस्थ वही व्यक्ति कहलाएगा जो शारीरिक एवं मानसिक दोनों रूप से स्वस्थ हो।

मन के स्वास्थ्य के लिए निम्नलिखित तथ्यों पर ध्यान देने की आवश्यकता है-
. स्वयं को अच्छे कार्यों में व्यस्त रखें।
. सदा सकारात्मक सोचें। नकारात्मक विचारों को तरजीह न दें।
. वर्तमान में जिएँ व उसका आनंद लें।
. हमेशा खुश रहें।
. अच्छे लोगों की संगति करें व अच्छा साहित्य पढ़ें।
. संघर्ष के पलों को चुनौती समझें न कि मुसीबत।
. जीवन में अध्यात्म को प्राथमिकता दें क्योंकि इससे मन की शांति प्राप्त होगी।
. अकेलापन महसूस न करें, अच्छी पुस्तकों को अपना साथी बनाएँ।

इस प्रकार यदि मन के स्वास्थ्य के लिए प्रयास किए जाएँ तो मन सदा प्रसन्न व आनंदित रहेगा तथा हमें अपना जीवन उद्देश्यपूर्ण लगेगा।




एक नई आशा के साथ फिर मिलेंगे . . . 

Wednesday, 3 January 2018

खुद को वक्त दें

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में मानव कहीं खो-सा गया है। वह हर समय किसी न किसी काम में उलझा रहता है, इस वजह से वह चिंता व तनाव से ग्रस्त रहता है। विडंबना यह है कि हर व्यक्ति जीवन में सफलता की बुलंदियों को छूना तो  चाहता है किंतु वह खुद को वक्त देना ज़रूरी नहीं समझता जबकि आत्मविकास के लिए यह पहली शर्त है।

कुछ लोग यह प्रश्न कर सकते हैं कि स्वयं को समय देना इतना ज़रूरी क्यों है? इसके लिए हमारे पास समय ही कहाँ है ? बस, इसी प्रश्न में इसका उत्तर भी छिपा है।
जब हमारे पास खुद के लिए समय नहीं है तो इसका सीधा अर्थ यह हुआ कि हम हमारी ज़िंदगी में खुद को महत्त्व नहीं देते अर्थात हमें इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता कि हम क्या सोचते हैं, हमें क्या करना चाहिए व क्या नहीं। यदि हम ही खुद को महत्त्व नहीं देंगे तो भला और कोई कैसे हमें महत्त्व देगा। शुरूआत तो हमें ही करनी होगी। हमें ही स्वयं चिंतन-मनन करके खुद की अच्छाइयों व बुराइयों का पता लगाना होगा और उनके अनुसार जीवन को सुधारकर बेहतर जीवन की नींव रखनी होगी।

यदि हम इतिहास के पन्नों को उलट कर देखें तो पाएँगे कि महान व्यक्तियों ने खुद चिंतन-मनन करके अपने विषय में जाना तथा आवश्यकतानुसार अपने जीवन में सुधार करके दूसरों के समक्ष खुद को आदर्श रूप में प्रस्तुत किया। सफ़लता की तीव्र आकांक्षा वाला व्यक्ति ही यह कर सकता है।

वस्तुतः खुद को वक्त देने से ही व्यक्ति अपने आप को झकझोरता है और खुद से प्रश्न करता है। अपने प्रश्नों के उत्तर वह स्वयं ही खोजता है और फिर उन्हें कार्यरूप में कार्यान्वित करता है। इस तरह वह चुनौतियों का सामना करने की ताकत खुद ही जुटाता है। वह स्वयं ही अपना शिक्षक, मार्गदर्शक व परामर्शदाता होता है। यह तभी हो सकता है, जब व्यक्ति खुद को पर्याप्त समय दे क्योंकि स्वचिंतन ही उन्नति का प्रवेश द्वार है।


एक नई आशा के साथ फिर मिलेंगे . . .