Sunday, 5 June 2016

छोटी-छोटी खुशियों से दामन भरो

इस दुनिया में एक ओर जहाँ ऐसे लोग हैं जो हमेशा अपना दुखड़ा रोते रहते हैं, वहाँ दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जो खुद तो खुश रहते ही हैं किंतु अपने आस-पास भी खुशियाँ बिखेरते रहते हैं। वास्तव में खुशियों का माहौल बनाने वाले यही लोग समाज की शान होते हैं और मानवता का विकास भी इन्हीं लोगों से होता है।ऐसे लोग साधारण-सी बात को महत्त्वपूर्ण बनाने की क्षमता रखते हैं, उनका छोटा-सा प्रयास किसी के चेहरे पर खुशी ला देता है, उनका छोटा-सा कृत्य किसी को अनजाने में उसके महत्त्वपूर्ण होने का अहसास करा देता है।
अभी पिछले दिनों मेरे साथ एक घटना घटी। उसी घटना और उस अनजान व्यक्ति ने ही मुझे प्रेरित किया कि आज मैं इस विषय पर ब्लॉग लिखूँ। संभव है कि किसी को यह घटना बड़ी साधारण लगे और उसे लगे कि इसमें कोई विशेष बात नहीं। मेरा नज़रिया भिन्न हो सकता है।
यह बात एक रात की है। मैं अपने बेटे के साथ कहीं जा रही थी। जब
हम सड़क पार कर रहे थे तो मैंने देखा कि कुछ ग्रामीण व्यक्ति, जिनमें
कुछ पुरुष व कुछ स्त्रियाँ थी, सड़क के एक ओर खड़े थे। इन व्यक्तियों में कुछ यौवनावस्था के थे तो कुछ वृद्धावस्था के। इन सब व्यक्तियों को एक 35 वर्षीय युवक संभाल रहा था। कहने का तात्पर्य यह है कि वह युवक ही उन्हें शहर की भीड़-भाड़ से आगाह कर रहा था और ट्रैफिक नियम समझा रहा था। वे सभी लोग शायद किसी बस या अन्य वाहन का इंतज़ार कर रहे थे ताकि अपने गंतव्य तक पहुँच सकें। सड़क पर उस दिन ट्रैफिक कुछ ज़्यादा ही था, इस कारण हमें भी कुछ क्षणों के लिए रुकना पड़ा। तभी अचानक मैंने देखा कि वह युवक जल्दी ही निकट खड़े आइसक्रीमवाले से कुछ आइसक्रीम लाया और अपने सभी बंधुओं-रिश्तेदारों को देने लगा। उसके वे सभी रिश्तेदार उसे न-न कहते हुए आइसक्रीम लेने लगे।शायद उन्हें अपने जीवन में पहली बार आइसक्रीम खाने को नसीब हो रही थी। उनका ज़बान से मना करना और आँखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान लिए आइसक्रीम हाथ में पकड़ना मुझे सिखा गया कि जीवन में दुसरों की खुशी कितने मायने रखती है। वह युवक जो आइसक्रीम लाया था, वह बहुत महँगी न होकर अत्यंत सस्ती थी किंतु केवल धन की दृष्टि से। मानवीय संवेदनाओं व भावनाओं को संतुष्टि प्रदान करने की दृष्टि से वह आइसक्रीम अमूल्य माध्यम साबित हुई क्योंकि आइसक्रीम को देखते ही उन ग्रामीणों के चेहरे खिल उठे और उनकी आँखों की चमक स्पष्ट रूप से इस बात को सिद्ध कर रही थी कि वे उस आइसक्रीम का स्वाद चखना चाहते हैं और उन्हें इस बात पर भी गर्व हो रहा था कि वह युवक उन्हें आइसक्रीम से सम्मानित कर रहा है।उस य़ुवक ने पहले उन सभी से आइसक्रीम के ऊपर का कागज़ उतरवाया और उनसे खाने को कहा, इतने में उसकी अपनी आइसक्रीम भी पिघलने लगी किंतु उसे इसकी परवाह न था क्योंकि अपने बंधुओं-रिश्तेदारों के चेहरे पर खुशी के भाव देखकर ही वह तृप्त हो रहा था और खुश हो-होकर हँसते हुए उन्हें उनकी पिघलती आइसक्रीम का जल्दी-जल्दी रस लेने के लिए निर्देश दे रहा था। वे सब भी हँसते-हँसते आइसक्रीम का रस ले रहे थे। कहने को तो यह किस्सा कुछ भी नहीं किंतु इसी के माध्यम से सभी ने कितना आनंद लिया और जीवन को वास्तव में भरपूर जिया। निश्चय ही यही जिंदगी है। दूसरों को छोटी-छोटी खुशियाँ दो और उनके साथ-साथ खुद भी संतुष्ट होने का आनंद लो।

एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........


Thursday, 2 June 2016

आखिर सुंदरता है क्या ?

आम तौर पर लोग कहते हैं वह बहुत सुंदर है, कितनी प्यारी है ना । फिर जब कोई प्रश्न करता है कि अच्छा उसकी सुंदरता का राज़ क्या है? तो कहा जाता है कि उसका रंग बहुत गोरा है या उसकी आँखें बहुत बड़ी-बड़ी हैं या उसके बाल कितने लंबे और काले हैं या हँसते हुए उसके
गालों में गड्ढे पड़ते हैं या उसकी मुस्कुराहट बड़ी प्यारी है आदि....।
अक्सर यही होता है, हम लोग किसी के शरीर की खूबसूरती को ही सुंदरता का मापदंड समझकर अपनी निर्णय सुना देते हैं जबकि ऐसी
सोच क्षणिक होती है क्योंकि वास्तव में व्यक्ति का मन भी देखना चाहिए, सिर्फ तन नहीं।
मन की सुंदरता महत्त्वपूर्ण है क्योंकि –
·       तन की खूबसूरती बाह्य होती है जबकि मन की सुंदरता आंतरिक।
·       तन की खूबसूरती तो आयु-वृद्धि के साथ क्षीण होने लगती है किंतु मन की खूबसूरती आयु-वृद्धि के साथ क्षीण नहीं होती।
·       तन की खूबसूरती को निखारने के लिए अनेक प्रकार की प्रसाधन सामग्री का उपयोग किया जाता है जबकि मन की खूबसूरती को निखारने के लिए व्यक्ति को अपने मन को उदार बनाने के लिए खुद को मिटाकर फिर गढ़ना पड़ता है।
·       तन की खूबसूरती सभी को सुलभ होती है किंतु मन की खूबसूरती
किसी विरले को ही सुलभ हो पाती है।(कहने का भाव यह है कि   तन की सुंदरता के दर्शन किसी की भी नज़रें कर सकती हैं किंतु मन की सुंदरता मात्र उसी को नज़र आती है जिसका हृदय पवित्र और नेक हो )
·       तन की खूबसूरती मृग-मिरीचिका के सदृश है जबकि मन की खूबसूरती कुबेर के कोष के समान है।(कहने का भाव यह है कि
यह ज़रूरी नहीं कि जिसका तन सुंदर हो उसका मन भी पवित्र और शुद्ध हो, किंतु जिस व्यक्ति का मन शुद्ध और पावन है उसका
हर कृत्य दूसरों के लिए प्रेरणादायी व परोपकारी होगा।)
·       तन का खूबसूरती के लिए आप जैसे हैं, वैसे रहकर ही आप उसके
दर्शन कर सकते हैं किंतु मन की खूबसूरती के दर्शन करने के लिए आपको अपने हृदय को पावन, शुद्ध और नेक बनाना होगा।
·       तन की खूबसूरती से आप कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के दिलों को जीत सकते हैं किंतु मन की खूबसूरती से आप पूरी दुनिया जीत
सकते हैं।
·       तन की खूबसूरती दूसरों के दिलों में ईर्ष्या उत्पन्न कर सकती है जबकि मन की खूबसूरती ईर्ष्या को समाप्त करने का माध्यम बन सकती है।
·       तन की खूबसूरती अहंकारजनित हो सकती है जबकि मन की खूबसूरती अहंकाररहित ही होगी।
·       तन की खूबसूरती का स्वामी कल्पनाओं में, माया-जाल में जीता है जबकि मन की खूबसूरती का स्वामी यथार्थ में जीता हुआ आदर्श की स्थापना करता है।
·       तन की खूबसूरती जहाँ ईश्वर की देन हैं वहाँ मन की खूबसूरती ईश्वर का अमूल्य वरदान है।
·       तन की खूबसूरती से लोगों को निकट बुलाया जा सकता है किंतु उनका मन नहीं जीता जा सकता। मन की सुंदरता से लोगों को निकट तो नहीं बुलाया जा सकता किंतु उनका मन अवश्य जीता जा सकता है।
अतः तन व मन दोनों की सुंदरता मायने रखती है, दोनों का महत्त्व है। यदि तन सुंदर है तो अच्छा है किंतु यदि मन भी सुंदर है तो सोने पर सुहागा है।
मैंने इस विषय पर ब्लॉग इसलिए लिखा क्योंकि आजकल लोग अपने तन की सुंदरता को बहुत महत्त्व देते हैं तथा मन की सुंदरता को नकार देते हैं। निश्चय ही दोनों को निखारें, तभी जीवन
की सार्थकता है।

 एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........