Friday, 11 March 2016

हँसो-हँसाओ, जीवन में सुख पाओ

हँसी मानव की जन्मजात प्रवृत्ति है। यह ईश्वर की ऐसी देन है जो सभी मनुष्यों को प्राप्त है । अपने जन्म के पहले सप्ताह में ही शिशु मुस्कुराने
व हँसने लगता है और कुछ ही महीनों में ज़ो-ज़ोर से किलकारी मारकर हँसता है । प्राय: देखा गया है कि मनुष्य की जैसे-जैसे आयु बढ़ती है, वैसे-वैसे उसके जीवन से हँसी दूर होने लगती है । यह स्थिति कदापि उचित नहीं है क्योंकि हमारी हँसी वह जीवनदायिनी शक्ति है जो हमें शारीरिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखती है । इस संबंध में कुछ तथ्य इस प्रकार हैं –

·       हँसी हमारे शरीर की प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करती है ।
·       हँसी हमें चिंता व तनाव से मुक्त करती है ।
·       हँसी के दौरान मस्तिष्क से एंडोरफिन का स्राव होता है जो हमारे शरीर में अच्छे रसायन का निर्माण करके हमें अच्छा अनुभव कराता है, हम दुख से मुक्त हो जाते हैं ।
·       ज़ोरदार हँसी से हमारी माँसपेशियाँ 45 मिनट तक तनावमुक्त रह सकती हैं ।
·       हँसी से हृदय में रक्त-संचार बहुत अच्छी तरह से होता है जो हृदय के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है ।
·       हँसी से दुख, दर्द, चिंता, तनाव व अवसाद के क्षण दूर होते हैं ।
·       हँसी हमें प्रसन्नचित्त, ऊर्जावान तथा उत्साहित बनाती है ।

इनके अतिरिक्त जब व्यक्ति अपने मित्रों, परिचितों, रिश्तेदारों या
साथियों के साथ हँसी-मज़ाक करता है तो सामाजिक रूप से भी उसे कई तरह से लाभ होता है, जैसे – 

·       उसकी समाज में प्रतिष्ठा बढ़ती है ।
·       लोग उसकी ओर आकृष्ट होकर उसकी मिलनसार व खुशनुमा रहने की सराहना करते हैं ।
·       उस व्यक्ति के कार्य का स्तर बढ़ जाता है ।
·       लोगों के साथ उसके संबंध मधुर व स्नेहपूर्ण होते हैं ।
·       लोग उसे अपना आदर्श या लीडर मानकर उसके साथ काम करना चाहते हैं या उसके सान्निध्य में रहना चाहते हैं ।


अत: अपने जीवन को खुशहाल बनाने के लिए हँसी-मज़ाक को जीवन
का अभिन्न अंग बनाने में ही समझदारी है । इस हेतु कुछ सुझाव इस
प्रकार हैं -
·       अपने मित्रों, परिवारजनों, परिचितों के साथ हँसे-खिलखिलाएँ ।
·       अपने व्यस्त जीवन में भी कुछ समय हँसी-मज़ाक अवश्य करें ।
·       शिशुओं और छोटे बच्चों के साथ बातें करें व खेलें।
·       अपने पालतू पशु के साथ खेलें व उसके साथ समय बिताएँ ।
·       अपने चेहरे पर सदा मुस्कान बनाए रखें ।
·       चुटकुले सुनें व सुनाएँ ।
·       हास्य से भरपूर कहानी, कविता आदि लेख पढ़ें।
·       ऐसे लोगों का संग करें जो खुशदिल हों व सदा मुस्कुराते रहते हों ।
·       अपने प्रिय मित्र या साथी के साथ प्रकृति की सुंदरता का आनंद लें ताकि माहौल खुशनुमा बने ।

यदि आप उपर्युक्त बातों पर गौर करके उन्हें अपने जीवन में लागू करेंगे तो निश्चय ही चिंतामुक्त रहकर प्रसन्नचित्त तो रहेंगे ही, साथ ही साथ आपके
अपने परिचितों, मित्रों व परिवारजनों से रिश्ते भी अधिक घनिष्ठ, मधुर व प्रेमपूर्ण हो जाएँगे । इसके अतिरिक्त आपकी कार्यक्षमता में भी वृद्धि होगी ।
आपका आत्मविश्वास सफलता की बुलंदियों को छूने में सार्थक सिद्ध होगा ।

एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........



विनम्रता और दीनता

विनम्रता को सभी ने श्रेष्ठ गुण सिद्ध किया है और मैं भी इससे पूर्णतया सहमत हूँ। विनम्रता वह आभूषण है जिससे व्यक्ति का व्यक्तित्व और निखरता है। चारित्रिक गुणों में विनम्रता को भी एक आवश्यक गुण माना
गया है। जो व्यक्ति विनम्र होता है, उसका सभी आदर-सम्मान करते हैं तथा वह सर्वत्र सराहना प्राप्त करता है । वह व्यक्ति ही विनम्र हो सकता  है जिसमें घमंड नाममात्र  भी न हो। विनम्रता का अर्थ है कि यदि कोई हमारे लिए कोई कार्य करे या हमारे कार्य में हमें सहयोग दे तो हम उसका आभार मानें और उसे हृदय से धन्यवाद कहें, यदि हमसे कोई गलती हो जाए तो हम उसे तुरंत मान लें और अपनी भूल के लिए क्षमा माँगें और किसी की प्रशंसा भी हृदय की गहराइयों से करें। ऐसा करने में हम न तो हिचकिचाएँ न ही स्वयं को हीन मानें। यदि हम किसी को धन्यवाद नहीं कहते, किसी के प्रति कृतज्ञ नहीं होते या किसी की प्रशंसा नहीं करते या अपनी गलती कभी स्वीकार नहीं करते तो हम विनम्र नहीं बल्कि कठोर और घमंडी प्रवृत्ति के हैं और घमंडी व्यक्ति खुद अपना ही दुश्मन होता है क्योंकि नकारात्मक होने के कारण उसकी सोच विस्तृत नहीं होती, वह संकीर्ण ही होती है। ऐसी सोच से वह अपनी कामयाबी का खुद ही गला घोंट देता है।
    विनम्र होना अच्छा है किंतु अतिविनम्र होना घातक है । अतिविनम्रता
का अर्थ है- दीनता । इसे सरल शब्दों में यों भी कहा जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति आपकी कृतज्ञता, आपके आभार को नहीं मानता या उसे आपकी कमज़ोरी मानता है तो ऐसे अवसरों पर सावधान रहें।यदि आप किसी से बार-बार विनम्रता से पेश आ रहे हैं और वह घमंड से फूला हुआ है तो यहाँ आपकी बार-बार की विनम्रता दीनता कहलाएगी। इसका यह तात्पर्य नहीं है कि आप उस व्यक्ति के समक्ष अकड़ें। नहीं, बिल्कुल नहीं। ऐसे व्यक्ति से संपर्क कम करें । यदि आवश्यकता ही हो तो ऐसी कोशिश करें कि टकराव की स्थिति न आए, कार्य चौकन्ना होकर करें। किसी को भी यह अधिकार न दें कि वह आपको दीन या कमज़ोर समझे क्योंकि इससे आपकी आत्मछवि धूमिल होती है । अत: विनम्रता को अपनाएँ, दीनता को त्यागें ।
याद रखें कि अगर विनम्रता मखमली वस्त्र है तो दीनता पैबंद है ।


एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........

Sunday, 6 March 2016

सब्र का मीठा फल

जिस प्रकार सहज रूप से पूरा पका हुआ फल ही मीठा होता है, उसी प्रकार धैर्यवान शांत व्यक्ति ही गुणों की खान होता है। जिस प्रकार कच्चा फल
कड़वा होता है, उसी प्रकार छोटी-छोटी बात पर तुनक जाने वाले व्यक्ति
का स्वभाव भी कटु होता है। जिस प्रकार सड़ा हुआ फल दुर्गंध पैदा करने के साथ-साथ स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है, उसी प्रकार अत्यंत क्रोधी स्वभाव का मनुष्य बार-बार गुस्सा होकर अपने शरीर के तापमान को बढ़ाकर शारीरिक व मानसिक – दोनों रूप से स्वयं को रुग्ण बना लेता है और उसके परिवेश पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ता है। इतिहास भी इस बात का साक्षी है कि धैर्यवान मनुष्यों के कारण ही धरती का अस्तित्व कायम है,समाज
उन्नति के पथ पर अग्रसर है। चाहे प्रभु श्रीराम हों या हज़रत मुहम्मद, गुरु गोबिंद सिंह हों या ईसा मसीह – सभी के जीवन में प्रतिकूल
परिस्थितियाँ आईं किंतु इन्होंने धैर्य, सहनशीलता व दृढ़ता का परिचय देकर
मानवता की स्थापना की और उदार मूल्यों की प्रतिष्ठा की।
    हर व्यक्ति के जीवन में अनुकूल व प्रतिकूल, दोनों ही प्रकार की स्थितियाँ आती हैं । जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में धैर्य खो देता है,
उसका मस्तिष्क इधर-उधर की व्यर्थ की बातों में ही अटक कर रह जाता है
और उसके जीवन का उद्देश्य खो जाता है । इसके विपरीत जो मनुष्य प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य का दामन नहीं छोड़ता व अपने लक्ष्य की
ओर ही संधान किए रहता है, वह उसे अवश्य प्राप्त करता है और उसका जीवन सार्थक हो जाता है । इसलिए सही ही कहा गया है कि सब्र का फल
मीठा होता है ।
एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........