Monday, 29 February 2016

ब्रह्मांड की चुम्बकीय शक्ति

मनुष्य चाहे आस्तिक हो या नास्तिक, यह बात तो सभी मानेंगे कि वे ब्रह्मांड का एक अत्यंत लघु अंग हैं । जो लोग ईश्वर को मानते हैं, वे स्वयं को उसका अंश मानते हैं । जो लोग ये मानकर चलते हैं कि संपूर्ण ब्रह्मांड
ऊर्जा द्वारा संचालित है, वे स्वयं को उस ऊर्जा का एक अणु मानते हैं। कहने का भाव यह है कि हर कोई ब्रह्मांड से हमारे घनिष्ठ व परम नाते
को स्वीकार करता है ।
ब्रह्मांड में बिजली के तार के समान अपार, असीमित व अक्षय शक्ति है।ऐसा नहीं है कि ब्रह्मांड को एडीसन, अब्राहम लिंकन, महात्मा गांधी आदि महान हस्तियाँ ही प्रिय थी, हम उसे प्रिय नहीं । ऐसा भी नहीं है कि ब्रह्मांड की शक्ति कम हो गई है, उसके पास हमें देने के लिए भंडार नहीं
है । ब्रह्मांड की शक्ति को जो जानता और महसूस करता है, वह ही उसका सदुपयोग करके क्रांति ला सकता है, ठीक वैसे ही जैसे इन महापुरुषों ने किया ।
 यदि बिजली के तार का विवेकपूर्ण उपयोग किया जाए तो वह वरदान सिद्ध होता है, उसी प्रकार यदि हम ब्रह्मांड की चुम्बकीय शक्ति का विवेकपूर्ण उपयोग करें तो यह हमारे लिए वरदान सिद्ध होगी । जैसे ऊपर फेंकी हुई गेंद गुरुत्वाकर्षण के कारण वापिस नीचे गिरती है वैसे ही ब्रह्मांड में आप जैसा संदेश संप्रेषित करेंगे वैसा ही आपको मिलेगा। यदि आप सत्यता, ईमानदारी, पवित्रता, प्रेम व परमार्थ आदि जीवन-मूल्यों से पोषित होकर अच्छा सोचेंगे, सकारात्मक दशा व दिशा में विचार करते हुए संदेश संप्रेषित करेंगे तो ब्रह्मांड आपके जीवन को वैसा ही संदेश संप्रेषित करने के लिए आपकी परिस्थितियों को आपके अनुकूल बनाने में जुट जाएगा । आपसे जैसी तरंगें प्रवाहित होंगी वैसी ही तरंगें आप तक लौटेंगी ।
अतः ब्रह्मांड की शक्ति का विवेकपूर्ण तरीके से इस्तेमाल करें और इच्छित फल पाएँ ।
एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........


Saturday, 27 February 2016

जे कोऊ निंदा करे, आपनो बैरी होए

भावनाएँ घोड़े के समान होती हैं । जैसे एक घुड़सवार में घोड़े को अपने नियंत्रण में करने की पूरी क्षमता होती है, वैसे ही मनुष्य में अपनी भावनाओं को नियंत्रण में करने की ईश्वर-प्रदत्त क्षमता है । जिस प्रकार
एक घुड़सवार घोड़े को नियंत्रण में  तभी कर सकता है जब उसने इसका
प्रशिक्षण लिया हो या इस विषय में जान प्राप्त किया हो , उसी प्रकार
भावनाओं को नियंत्रण में वही व्यक्ति कर सकता है जिसने इसका ज्ञान
प्राप्त किया हो । वही व्यक्ति यह कर सकता है जो या तो योगा करता हो
या अपने भीतर ईश्वरीय सत्ता के दर्शन करता हो या ये बात भलीभाँति जानता और महसूस करता हो कि सकारात्मक सोच उन्नति का द्वार है ।
जो व्यक्ति दुर्भावनाओं के वशीभूत होकर रहता है, वह यहाँ-वहाँ निंदा ही
करता रहता है - कभी परिस्थितियों की, कभी समय की तो कभी अपने संपर्क में आने वाले लोगों की । ऐसा करने में उसे रसानुभूति होती है और
वो आनंद पाता है । वह इस बात से अनजान ही रहता है कि ऐसा करके
वह क्षणिक आनंद ही प्राप्त कर रहा है, चिरस्थायी नहीं । उसे ये भी नहीं मालूम कि ये क्षणिक आनंद उसे जीवन में नकारात्मक बनाता जा रहा है
और वह खुद ही अपनी खुशियों और सफलताओं के द्वार बंद कर रहा है
तथा दुखों, संकटों व असफलताओं को निमंत्रण दे रहा है । 
इस प्रकार जो व्यक्ति किसी की निंदा करता है वह खुद अपना शत्रु है । व्यक्ति निंदा तभी करता है जब वह किसी के प्रति ईर्ष्या या वैर-द्वेष रखता है और यह तभी होता है जब व्यक्ति भीतरी या आत्मिक रूप से दुर्बल हो या हीन भावना का शिकार हो ।
अतः जीवन में सफलता पाने के लिए भावनाओं रूपी घोड़े पर एक घुड़सवार
की भाँति बैठकर बुद्धि यानि ईश्वरीय-सत्ता में दृढ़ आस्था की लगाम से उन्हें अपने नियंत्रण में कीजिए और जिंदगी रूपी घुड़सवारी का आनंद लीजिए ।
एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........


Wednesday, 24 February 2016

आपके शरीर का इंजन : आपका मस्तिष्क

आईने में हम अपना प्रतिबिम्ब देखते हैं अर्थात हम जैसे हैं वैसे ही हम उसमें स्वयं को पाते हैं । ठीक यही स्थिति हमारे मस्तिष्क की है । जैसे हमारे विचार होते हैं, जैसा हम सोचते हैं, हमारा मस्तिष्क वैसा ही कार्य करता है । कहने का तात्पर्य यह है कि यदि हमारी सोच नकारात्मक है
तो मस्तिष्क भी नकारात्मक कार्य करता है किंतु इसके विपरीत यदि हमारी सोच सकारात्मक है तो मस्तिष्क सकारात्मक कार्य करता है ।
अच्छे व बुरे भाव तथा विचार  तो उत्पन्न होते ही रहते हैं ,ये हमारा
निजी कार्य व कर्तव्य है कि हम अच्छा ही सोचें क्योंकि अपनी जिंदगी के
मालिक हम खुद हैं, अपने चरित्र का विकास हमें खुद ही करना है ।
जिस प्रकार हम प्रतिदिन अपने शरीर के लिए भोजन करते हैं  और हमारा यह प्रयास रहता है कि हम संतुलित भोजन करें ताकि हम स्वस्थ रहें । उसी प्रकार क्या हम अपने दिमाग को भी प्रतिदिन भोजन कराते हैं और क्या हमारी यह कोशिश रहती है कि हम उसे भी सदविचारों से पोषित भोजन दें या फिर हम उसे जैसा भी समाज में नकारात्मक व कुविचारों से ग्रस्त कैसा भी भोजन खिला देते हैं ।
सोचिए ! शरीर के भोजन के लिए इतनी सावधानी और मस्तिष्क के भोजन के लिए इतनी लापरवाही ! जबकि हमारा यह शरीर तो रेलगाड़ी के समान है और मस्तिष्क इंजन के समान है । जिस प्रकार इंजन के बिना रेलगाड़ी नहीं चल सकती, उसी प्रकार मस्तिष्क के बिना शरीर जीवित शव है ।अत: इस रेलगाड़ी रूपी शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए मस्तिष्क रूपी इंजन में सकारात्मक सोच व सदविचारों की सामग्री डालें ।
यदि आप प्रतिदिन अपने शरीर के साथ-साथ अपने दिमाग का भी ख्याल रखेंगे तो आपका एक-एक दिन आपको वरदान के समान प्रतीत होगा और यही रेलगाड़ी आपको आपके सपनों के स्टेशन तक अवश्य ले जाएगी ।


तो देर किस बात की, दृढ़-निश्चय रूपी टिकट लें और अपनी जिंदगी के सुहाने सफ़र की शुरुआत करें ।
एक नई आशा के साथ फ़िर मिलेंगे..........


Sunday, 21 February 2016

मस्तिष्क : आपकी बैटरी

अक्सर देखा गया है कि कुछ लोग हीन भावना के शिकार हो जाते हैं । ऐसा तब होता है जब उनके किसी साथी के सर्वाधिक अंक आ जाते हैं या उनके साथी की पदोन्नति हो जाती है , तो लोग हारे हुए व्यक्ति के समान यह कहते हैं कि अरे ...... वह तो बहुत होशियार है, मैं उसकी तरह कहाँ ? मुझे उसकी तरह सफलता नहीं मिल सकती । मैं चाहूँ तब भी मैं उसकी तरह सफल नहीं हो सकता ।
इस बात पर उन लोगों को मैं यह कहना चाहती हूँ कि आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि आप उससे कम हैं । क्या आपको मालूम है कि आप ऐसी नकारात्मक बातें सोचकर या कहकर अपने मस्तिष्क को जाने-अनजाने गलत संकेत दे रहे हैं और मस्तिष्क ही आपकी बैटरी है । आप खुद ही अपनी बैटरी को गलत चार्ज न करें । ये आप जानते ही होंगे कि गलत चार्ज से विस्फोट ही होगा । यदि आप एक विजेता की तरह सोचेंगे तो आपका मस्तिष्क आपको विजय दिलाएगा किंतु यदि आप निराश-हताश व्यक्ति की तरह सोचेंगे तो निराशा ही हाथ लगेगी ।
इससे बचने का उपाय यह है कि जब ऐसी स्थिति आए तो तुरंत अपने विचारों में परिवर्तन करें, संभव हो तो बात का रुख मोड़ दें या उस स्थान से उठकर चले जाएँ । य़दि आप सचमुच सफलता के शिखर पर पहुँचना चाहते हैं तो आपको अपने दिमाग को हमेशा अच्छे विचारों से पोषित करना होगा तथा सकारात्मक होना होगा ।
ऐसा कीजिए और फिर देखिए कमाल।  
एक नई आशा के साथ फिर मिलेंगे..........


Thursday, 18 February 2016

आइए, शुरूआत करें सुहाने सफ़र की.......


अपने 30 वर्षों के अध्यापन में मैंने छात्रों के जीवन को निकट से देखा, जाँचा और परखा है ।
मैंने अक्सर देखा है कि आजकल के छात्रों में वो उमंग, वो जोश नहीं है जैसा मैंने अपने छात्र-जीवन में महसूस किया था । इसके कई कारण हो सकते हैं जिनमें मुख्य कारण यह है कि आधुनिकीकरण की वजह से
आजकल के बच्चों का प्रकृति से नाता टूट-सा गया है । उन्हें कंप्यूटर,
मोबाइल फोन जैसे इलैक्ट्रानिक उपकरण ज़्यादा लुभाते हैं , जिसके कारण उनका बचपन कहीं खो-सा गया है । बचपन के ये सुनहरे दिन फिर कभी नहीं लौटेंगे । अतः ये बहुत ज़रूरी हो गया है कि बच्चों को इतनी प्रेरणा, इतना प्रोत्साहन दिया जाए कि वे अपना बचपन खुलकर जीते हुए अपने जीवन में मनोवांछित लक्ष्य प्राप्त करें और उनका स्वाभाविक विकास बाधित न हो । वे अच्छे बच्चे, अच्छे नागरिक बनकर जीवन में उन्नति करें ।
इस ब्लॉग के माध्यम से मेरा यह प्रयास है कि मैं छात्रों से रूबरू होकर उनका मार्गदर्शन कर सकूँ और उन्हें प्रेरणा दे सकूँ ताकि वे तो जीवन -क्षेत्र में विजयी हों ही, साथ ही मेरा शैक्षिक जीवन भी सार्थक हो जाए ।

इन्हीं उद्देश्यों और आशा के साथ..............